आज के जीवन शैली में dieting, Intermittent fasting (IF) जैसे शब्द प्रचलन में बढ़ रहे हैं । यद्यपि हिन्दू धर्म सहित मुस्लिम, बौद्ध, जैन कई धर्मो में धार्मिक उपवास या व्रत की बात कही गई है । फिर नई पीढ़ी के लोग इसकी अवहेलना करते रहे किन्तु अब जब उपवास को विज्ञान सम्मत स्वास्थ्य के […] More
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विज्ञान के विकास के साथ-साथ चिकित्सा विज्ञान का विकास हुआ है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जहॉं तत्कालिक परिणाम देने के लिये विख्यात हैं वहीं गंगीर से गंगीर शल्य करने में भी सक्षम है किन्तु इतने विकास के बाद भी कुछ रोग ऐसे हैंजिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान नियंत्रित तो कर सकता है किन्तु जड़ से समाप्त नहीं […]
महर्षी चरक के अनुसार-”किसी चिकित्सा पद्यति में न तो कोई ऐसी पुस्तक न ही हो सकती है जिसमें भूत, भविष्य एवं वर्तमान के समस्त रोगों का नाम लिखा हो । आयुर्वेद ने बताया है कि रो भले असंख्य हों परिचित हों, अपरिचित हो, नया हो या पुराना । उनके संक्षिप्त एवं सूत्रबद्ध हैं । इसलिये […]
आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक एवं केवल मानसिक नहीं होता अपितु यदि शारीरिक रोग हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव मन पर और यदि मानसिक हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव शरीर पर निश्चित रूप से पड़ता है । इसी कारण आयुर्वेद का एक सफल वैद्य अपने रोगी के केवल रोग के […]
आयुर्वेदिक उत्पाद एक व्यक्तिगत देखभाल और स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद हैं जो औषधीय उपचार प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। महिलाओं के शिक्षित होने की दर अधिक होने एवं कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि होने कारण तथा ब्यूटी प्रोडक्ट में लगातार रसायनों के बढ़ते दर के कारण महिलयां व्यक्तिगत देखभाल के लिये हर्बल सौदर्य […]
किसी भी ज्ञान को व्यवहारिक रूप से उपयोगी बनाने के लिये आवश्यक है कि उस ज्ञान का शोधन एवं परिक्षण होते रहना चाहिये । उस ज्ञान के विकास के लिये यह भी आवश्यक है कि उसे आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुँचाया जाये । इसी क्रिया को आज शिक्षा या शिक्षण कहते हैं । चिकित्सा […]
श्रीमद्भागवत पुराण के साथ-साथ कई अनेक हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में समुद्रमंथन की चर्चा है । श्रीमद्भागवत के अनुसार इस समुद्रमंथन से साक्षात भगवान बिष्णु के अंशांश अवतार हाथों में कलश लिये धनवंतरी प्रगट हुये, जो आयुर्वेद के प्रवर्तक थे । महर्षि बाल्मीकी ने अपनी कृति रामायण में धनवंतरी को ‘आयेर्वेदमय’ अर्थात आयुर्वेद का साक्षात स्वरूप […]
भूमिका – Prelude स्वास्थ्य के बिना मनुष्य संसार में अपने इच्छा अनुसार सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । अपने लक्ष्य में सफल होने के लिये मनुष्य को स्वस्थ मन और स्वस्थ तन की आवश्यकता है । मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं । किसी भी काम करने के लिये प्रेरित करते […]
भूमिका – Prelude ”जान है तो जहॉंन है।” और ”स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है।” ऐसे हजरों स्लोगन हमारे भारतीय समाज में प्रचलित हैं । ये सभी स्लोगन हमें अपने स्वाथ्य के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ स्वास्थय के महत्व को प्रदर्शित करते हैं । वास्तव में हमें कुछ भी छोटे […]
Introduction – भूमिका सृष्टि के उत्पत्ती के साथ ही मानव जीवन का विकास प्रारंभ हुआ । आदि मानव से आज के आधुनिक मानव सम्भ्यता तक अनेक सोपानों से होकर मनुष्य गुजरा है । समय के अनुसार उनके आवश्यकताओं में भी परिवर्तन हुआ है किन्तु मूलभूत आवश्यकताएं तो वहीं के वहीं रहे केवल उनके स्वरूप में […]
आयुर्वेद केवल और केवल प्राकृतिक हर्बल औषधियों के आधार पर ही निदानात्मक उपचार करता है । आयुर्वेद लोगों काे स्वस्थ जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है । यह किसी भी रोग या स्वास्थ की विपरित परिस्थितियों से सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है । पर्यावरणीय असंतुलन एवं खान-पान में असंतुलन के कारण आज […]